आयुर्वेदीय रसायन चिकित्सा | Rejuvenation therapies in Ayurveda
आयुर्वेदीय शास्त्र में रसायन चिकित्सा एक अत्यंत महत्वपूर्ण व प्रचलित विषय है. स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाए रखने में, रोगमुक्त युवा बनाए रखने में रसायन चिकित्सा का महत्वपूर्ण स्थान है। जाने अनजाने में हम अक्सर रसायन औषधियों का प्रयोग करते ही हैं, जैसे; आवंला, च्यवनप्राश, मूसली आदि.
आयुर्वेद रसायन चिकित्सा आधुनिक रसायन शास्त्र (Chemistry) से पूर्णतयः भिन्न है. जहाँ आधुनिक रसायन शास्त्र से अर्थ एक ऐसे विज्ञान से है जिसमें पदार्थ, तत्वों, परमाणु व केमिकल्स आदि का अध्ययन किया जाता है, आयुर्वेदीय रसायन चिकित्सा से अभिप्राय ऐसी चिकित्सा से है जो शरीर में ओज (immunity) की वृद्धि करती है तथा इसके प्रयोग से व्यक्ति रोगमुक्त, बुढापा मुक्त होकर स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन प्राप्त करता है.
आचार्य चरक ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ चरक संहिता में रसायन के गुणों को कुछ यूं कहा है:
दीर्घमायुः स्मृतिंमेधामारोग्यं तरुणं वयः| प्रभावर्णस्वरौदार्यं देहेंद्रियबलं परं
वाक्सिद्धि प्रणतिं कान्तिं लभते ना रसायानात् | लाभोपायो हि शस्तानाम रसादीनां रसायनम् |
‘रसायन दीर्घ आयु प्रदान करने वाला, स्मरण शक्ति तथा धारण शक्ति (मेधा) को बढाने वाला, शरीर की कांति व वर्ण को निखारने वाला, वाणी को उदार बनाने वाला, शरीर व इन्द्रियों में सम्पूर्ण बल का संचार करने वाला होता है. इसके अतिरिक्त रसायन सेवन करने से वाक् सिद्धि (कहा गया सत्य होने वाला), नम्रता व शरीर में सुन्दरता, ये सभी गुण प्राप्त होते हैं.’
अतः ऐसा औषध, आहार और विहार (दिनचर्या) जो वृद्धावस्था एवं रोगों को नष्ट करे, रसायन कहलाता है।
रसायन सेवन की विधियाँ:
रसायन सेवन की दो प्रकार की विधियों का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है;
- कुटीप्रावेशिक (Indoor method) – रसायन सेवन के लिए यह प्रमुख विधि है। इसमें व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए कुटी (चिकित्साल्य या हैल्थ रिज़ॉर्ट) में रहकर रसायन द्रव्यों का सेवन वैद्य की देख रेख में करवाया जाता है।
- वातातपिक (Outdoor method) – वाततापिक अर्थात वायु और आतप का सेवन करते हुए रसायन द्रव्यों का सेवन। इस विधि में व्यक्ति को चिकित्सालय या हैल्थ रिज़ॉर्ट में रहने की आवश्यकता नहीं होती, वैद्य के निर्देशों के अनुसार अपने घर अथवा पसंदीदा स्थान में रसायन द्रव्यों का सेवन किया जा सकता है।
इन दोनों विधियों में कुटीप्रावेशिक विधि प्रमुख और अधिक लाभदायी है।
रसायन के भेद :-
- औषध रसायन – औषधियों पर आधारित होता है।
- आहार रसायन – आहार और पोषण पर आधारित होता है।
- आचार रसायन – आचार और सद्वृत्त पर आधारित होता है।
कौन है रसायन सेवन के योग्य-अयोग्य?
रसायन चिकित्सा स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य संरक्षण और रोगमुक्त जीवन की प्राप्ति के लिए हैं। हम सभी युवा व रोगमुक्त रहना चाहते हैं परंतु आयुर्वेदानुसार निम्न सात प्रकार के व्यक्तियों को रसायन का सेवन नहीं करना चाहिए; अजितेंद्रिय, आलसी, दरिद्र, प्रमादी, व्यसनी, पापकर्मों मे लिप्त और औषधियों का अपमान करने वाले। केवल वही मनुष्य रसायन सेवन के योग्य है, जो उपरोक्त से अतिरिक्त हों। आचार्य सुश्रुत के अनुसार;
पूर्वे वयसि मध्ये वा मनुष्यस्य रसायनम ।
प्रयुज्जीत भिषक प्राज्ञ: स्निग्धशुद्धतनों: सदा॥
अर्थात युवा अथवा मध्यावस्था में, स्निग्ध और शुद्ध शरीर वाले मनुष्य को रसायन का सेवन बुद्धिमान वैद्य सदा करवाए।
स्निग्ध और शुद्ध शरीर से यहाँ अभिप्राय पंचकर्म द्वारा शरीर शोधन से है। रसायन सेवन से पहले वमन विरेचन आदि के द्वारा मनुष्य को शरीर की शुद्धि कर लेनी चाहिए, अन्यथा रसायन सेवन का पूरा फल प्राप्त नहीं होता।
………………………………………… क्रमश: (To be continued in next post)
कैसे किया जाता है कुटीप्रावेशिक रसायन का प्रयोग?
कैसे किया जाता है वाततापिक रसायन का प्रयोग?
कौन सी औषधियाँ हैं रसायन?
क्या हैं आंवला के गुण?
क्या हैं च्यवनप्राश के गुण?
क्या है आचार रसायन?
इन सभी के बारे में जानने के लिए हमसे जुड़े रहिए………
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