Piles in pregnancy; How to get rid? Prevention and treatment for piles in pregnancy
Piles in pregnancy
Article by: Dr. Saket K. Garg, Senior Ayurveda Consultant
Sanjeevani Ayurveda, Saharanpur, U.P.
Piles in Man & Woman & गर्भावस्था की मुख्य ज्वलंत समस्या…अर्श PILES
समस्त नारी शक्ति को “ स्वस्थ भारत…स्वस्थ समाज ” की मुहीम में, मेरा पुनः नमन और अभिनंदन । वैसे तो , आज का स्वास्थ्य संबंधित विषय ऐसा हैं जो स्त्री और पुरुष दोनों को ही समान रूप से प्रभावित करता हैं और यह भी कटु सत्य हैं कि समाज का एक बड़ा वर्ग इस रोग से , संकोचवश किसी प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा उचित परामर्श लिए बगैर , कष्टकारी जीवन जीने को मजबूर हैं । आइए हम स्वास्थ्य संभाषा / चर्चा को प्रारंभ करते हैं । देवियों और सज्जनों आज का स्वास्थ्य विषय हैं “ अर्श ”/Piles/Haemorrhoids । जिसे सामान्य भाषा में ‘ बवासीर ’ के नाम से जानते हैं ।
सामान्यतः विषय की गंभीरता को देखते हुए जो आहार – विहार इस लेख में बताए जाएंगे , वह पुरुष और स्त्री दोनों पर समान रूप से लागू होंगे । किंतु फिर भी इस लेख को मुख्यतः “ महिला स्वास्थ्य ” को ध्यान में रखते हुए समर्पित कर रहा हूॅं । क्योंकि स्त्रियां , समाज की अनमोल धरोहर हैं और वें ,उस अनमोल धरोहर का एक अनमोल किरदार “ माता ” के रूप में निभाते हुए , समाज को पूर्ण बनाती हैं ।
“ गर्भावस्था ” जैसे कठोर जीवन पथ पर चलते हुए स्त्री / माता जब बच्चे अथवा संतान को जन्म देती है तो उसे असीम और असहनीय शारीरिक और मानसिक दबाव और पीड़ा झेलनी पड़ती है , जिसका अंदाजा एक पुरुष वर्ग या पुरुष जाति निश्चित रूप से कभी नहीं लगा सकती । और उसी दबाव के कारण शरीर में विशेषतया: शौचकर्म के मार्ग /Anus-Anal Canal-Perianal region को रक्त पूर्ति / Blood Supply करने वाली रक्त वाहिनियों Blood Vessels पर असहनीय दबाव पड़ता हैं , जिसके कारण प्रसूता अथवा Delivery होने के उपरांत माताओं में शौच मार्ग में अर्श / Piles उत्पन्न हो जाते हैं । जिसमें से समय-2 पर रक्त स्राव /Bleeding और दर्द होता रहता हैं । और स्त्री अथवा माताएं संकुचित स्वभाव और समाजिक प्रतिष्ठा हानि के कारण , बिना किसी उचित चिकित्सा परामर्श के ही , ठीक होने का निरर्थक प्रयास और इंतजार करती रहती हैं । जिसका परिणाम यह होता हैं कि जो वह बिमारी निरंतर बढ़ती जाती हैं और धीरे-धीरे दवाई से ठीक ना होकर शल्य चिकित्सा /Surgery द्वारा ‘ही’ ठीक होने की दशा में पहुॅंच जाती हैं । वैसे तो इस रोग के बहुत कारण होते हैं किंतु कुछ मुख्य कारणों को नीचे इंगित किया जा रहा हैं –
अर्श/Piles/Hemorrhoids के मुख्य कारण –
1. स्त्रियों में गर्भावस्था में शौच मार्ग में रक्त वाहिनियों पर अनियंत्रित – अत्याधिक दबाव।
2. खाने में रेशेदार / Fibrous Diet जैसे सलाद आदि का अभाव ।
3. कम पानी पीना ।
4. शारीरिक श्रम एवं एक्सरसाइज और योग आदि को ना करना ।
5. भोजन की अनियमित मात्रा अर्थात कभी ज्यादा कभी कम सेवन करना ।
6. भोजन को नियमित समय पर ना लेते हुए कभी बहुत जल्दी और कभी भोजन काल के बहुत बाद में भोजन ग्रहण करना ।
7. बिना रेशेदार आहार जैसे मैदे से निर्मित आहार अथवा फास्ट फूड मोमोज , चाऊमीन , बर्गर , स्प्रिंग रोल , पिज्जा आदि का अधिक सेवन करना ।
8. मिर्च – मसाला , आचार को निरंतर अधिक मात्रा में ग्रहण करना ।
9. मीट – मछली आदि मांसाहारी आहार का सेवन करना ।
10. बीड़ी , तम्बाकू , सिगरेट , शराब/एल्कोहल आदि अन्य नशीले पदार्थों का लगातार और लंबे समय तक प्रयोग करना
11. Liver/यकृत संबंधी किसी बिमारी से ग्रसित होना ।
12. लंबे समय से “ कब्ज ” का बने रहना । अथवा शौच कर्म में देर तक बैठे रहना और शौच करते हुए दबाव या जोर लगाना ।
13. आधुनिक जीवन शैली और दूषित आहार प्रणाली का सेवन करना ।
14. एक ही पोजीशन में लगातार बैठे रहना अथवा लगातार खड़े रहना ।
अर्श / Piles के सामान्य लक्षण
1. शौच के समय या उसके बाद शौच में रक्तस्राव / हानि का होना ।
2. शौच के समय और बाद में शौच मार्ग में दर्द होना ।
3. शौच मार्ग से किसी भी प्रकार का मांस / गांठ का बाहर आना ।
4. शौच मार्ग में सूजन / Swelling का बने रहना।
How to prevent अर्श / Piles चिकित्सा
1. शारीरिक श्रम न करना आदि उपरोक्त सभी कारणों का त्याग करना ।
जैसे – नियमित रूप से प्रात:काल योग , व्यायाम , Morning walk, Excercise आदि को करना ।
2. प्रातःकाल खाली पेट , 2-3 गिलास नींबू पानी अथवा गर्म पानी का सेवन करना ।
3. नाश्ते में अंकुरित चने , सोयाबीन , मोठ ,दलिया , आटे के जलवे, रोटी-सब्जी, फल, दूध आदि का नियमित सेवन करना ।
4. लंच-डीनर में बिना छाने आटे की रोटी, सब्जी, दाल, आदि का खीरा-ककड़ी-गाजर की सलाद के साथ सेवन करना ।
5. भोजन से प्राय एक घंटा पहले और एक घंटा बाद तक जल का सेवन ना करना ।
6. भोजन के तुरंत बाद ना सोना ।
7. निरंतर अग्नि अथवा भूख बढ़ाने वाले औषध द्रव्य जैसे – सोंठ , मरिच , पिपली , हींग , जीरा , चित्रक आदि का सेवन करना ।
8. रोज रात्रि में सत् ईसबगोल एक चम्मच शक्कर के दूध अथवा गर्म जल से सेवन करें ।
9. निरंतर दिनचर्या में सुबह-शाम गर्म पानी से खाली पेट , हरड़ का मुरब्बा ग्रहण करें ।
10. शौच करते हुए ज्यादा जोर या दबाव न लगाएं ।
अगर स्त्रियों अथवा माताओं को ऊपर बताई गई आहार – विहार प्रधान चिकित्सा का विशेषता अनुपालन करना चाहिए ताकि वह स्वत: स्वस्थ रहकर भावी पीढ़ी , संपूर्ण समाज और संपूर्ण परिवार को एक नई ऊर्जा और शक्ति प्रदान कर सकें ।
उपरोक्त लेख माताओं , स्त्रियों और गर्भावस्था में वर्तमान में भावी संतान को जन्म देने की इच्छा से कष्टप्रद शारीरिक और मानसिक पीड़ा को जो सहन कर रहीं हो , ऐसी कठिन दिनचर्या का सामना करने वाली सभी महिला और नारी शक्ति को निजी रूप से सादर नमन और उनका अभिनंदन करते हुए समर्पित कर रहा हूं ।
क्योंकि
“ स्त्री स्वस्थ हैं तो राष्ट्र स्वस्थ हैं ”
धन्यवाद ।
Note – उपरोक्त लेख , केवल “ स्वास्थ्य जन जागरूकता ” के उद्देश्य से लिखा गया हैं , जिसमें किसी भी प्रकार की निजी अथवा चिकित्सीय त्रुटि हेतु लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।
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